आज मैंने दो ब्लॉग पर बाप बेटे और सास बहू की समस्याओं पर दो पोस्ट देखीं । दोनों जगह लोग अलग अलग लोगों को और उनके हालात को दोष दे रहे हैं।
इतनी बहस के बाद अभी तक तो यही तय नहीं हो पा रहा है कि दोष किसका है और कितना है ?
जो ख़ुद को इंसान बना पाए । उन पर भी ज़ुल्म ढहाए गए । इतिहास गवाह है कि सबसे ज़्यादा ज़ुल्म सबसे अच्छे लोगों पर ही हुआ है ।
इमाम हुसैन इसकी ज़िंदा मिसाल हैं।
तब सच्चा समाधान क्या है ?
इसे जानने के लिए इंसान को अपनी संकीर्णता और अपने पक्षपात की आदत छोड़नी होगी।
सारे ज़ुल्म की ज़ड़ यही है । जब भी किसी पर कोई ज़ुल्म हुआ तो ज़ालिम में ये दोनों बुराईयाँ ज़रूर मिलीं ।
जो भी आदमी हक़ और इंसाफ़ के लिए कुछ करना चाहता है तो उसे पहले ख़ुद को इन दोनों बुराईयों से पाक करना होगा। उसकी यही कोशिश साबित करेगी कि अपने इरादे के प्रति वह कितना गंभीर है ?
अपने अंदर बुराई को क़ायम रखते हुए बाहर की बुराई को मिटाने की कोशिश या तो नादानी कहलाती है या फिर पाखंड !
दुनिया के साथ साथ ब्लॉग जगत में भी आज यही चलन आम है ।
बहुत सही कही आपने!
ReplyDeleteसच्चे लोगों को ही कठिन परीक्षा देनी होती है!
मक्कार तो मक्करी सभी जगह करते हैं!
Aapka Shukriya Shastri ji .
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