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Sunday, August 26, 2012
Saturday, September 3, 2011
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ईमान चाहिए और अल्लाह के हुक्म की फ़रमांबरदारी
इंसान अपने डर और लालच को जीतता आया है ईश्वर अल्लाह पर ईमान की बदौलत। आज यह ताक़त कम इंसानों के पास है और ज़्यादातर लोग इससे ख़ाली हैं।
कौन आज ईश्वर को मानता है ?
और कौन ईश्वर की मानता है ?
कौन कर्मफल में विश्वास रखता है ?
जब न तो विश्वास है और न ही वह किसी अनुशासन को मानता है तो फिर एक अन्ना ही कैसे मिटा सकता है देश से भ्रष्टाचार ?
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ईमान चाहिए और अल्लाह के हुक्म की फ़रमांबरदारी।
जिसे हमारी बात बुरी लगे, वह सही तरीक़ा हमें बता दे।
जय हिन्द !
वंदे ईश्वरम् !!
कौन आज ईश्वर को मानता है ?
और कौन ईश्वर की मानता है ?
कौन कर्मफल में विश्वास रखता है ?
जब न तो विश्वास है और न ही वह किसी अनुशासन को मानता है तो फिर एक अन्ना ही कैसे मिटा सकता है देश से भ्रष्टाचार ?
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ईमान चाहिए और अल्लाह के हुक्म की फ़रमांबरदारी।
जिसे हमारी बात बुरी लगे, वह सही तरीक़ा हमें बता दे।
जय हिन्द !
वंदे ईश्वरम् !!
Sunday, July 17, 2011
क्या मांसाहारी पशु-पक्षी श्रेष्ठ होते हैं ?
सोचने का एक पहलू यह भी है कि गीता में श्री कृष्ण जी ने सभी प्रधान चीज़ों को स्वयं का प्रतिरूप बताया है जैसे कि नक्षत्रों में स्वयं को चन्द्रमा बताया है, हालांकि यह बात और है कि चन्द्रमा को नक्षत्र कोई भी नहीं मानता। पेड़ों में ख़ुद को पीपल बताया है और आज पीपल पूजा जा रहा है। जब पशु-पक्षियों की बात आई तो उन्होंने स्वयं को सिंह, मगरमच्छ और गरूड़ बताया है। ये सभी मांसाहारी हैं।
श्री कृष्ण जी ने स्वयं को व्यक्त करने के लिए श्रेष्ठ पशु-पक्षियों के नाम पर मांसाहारी जीवों को ही क्यों चुना ?
श्री कृष्ण जी ने स्वयं को व्यक्त करने के लिए श्रेष्ठ पशु-पक्षियों के नाम पर मांसाहारी जीवों को ही क्यों चुना ?
Friday, June 24, 2011
ज़ुल्म की ज़ड़
आज मैंने दो ब्लॉग पर बाप बेटे और सास बहू की समस्याओं पर दो पोस्ट देखीं । दोनों जगह लोग अलग अलग लोगों को और उनके हालात को दोष दे रहे हैं।
इतनी बहस के बाद अभी तक तो यही तय नहीं हो पा रहा है कि दोष किसका है और कितना है ?
जो ख़ुद को इंसान बना पाए । उन पर भी ज़ुल्म ढहाए गए । इतिहास गवाह है कि सबसे ज़्यादा ज़ुल्म सबसे अच्छे लोगों पर ही हुआ है ।
इमाम हुसैन इसकी ज़िंदा मिसाल हैं।
तब सच्चा समाधान क्या है ?
इसे जानने के लिए इंसान को अपनी संकीर्णता और अपने पक्षपात की आदत छोड़नी होगी।
सारे ज़ुल्म की ज़ड़ यही है । जब भी किसी पर कोई ज़ुल्म हुआ तो ज़ालिम में ये दोनों बुराईयाँ ज़रूर मिलीं ।
जो भी आदमी हक़ और इंसाफ़ के लिए कुछ करना चाहता है तो उसे पहले ख़ुद को इन दोनों बुराईयों से पाक करना होगा। उसकी यही कोशिश साबित करेगी कि अपने इरादे के प्रति वह कितना गंभीर है ?
अपने अंदर बुराई को क़ायम रखते हुए बाहर की बुराई को मिटाने की कोशिश या तो नादानी कहलाती है या फिर पाखंड !
दुनिया के साथ साथ ब्लॉग जगत में भी आज यही चलन आम है ।
इतनी बहस के बाद अभी तक तो यही तय नहीं हो पा रहा है कि दोष किसका है और कितना है ?
जो ख़ुद को इंसान बना पाए । उन पर भी ज़ुल्म ढहाए गए । इतिहास गवाह है कि सबसे ज़्यादा ज़ुल्म सबसे अच्छे लोगों पर ही हुआ है ।
इमाम हुसैन इसकी ज़िंदा मिसाल हैं।
तब सच्चा समाधान क्या है ?
इसे जानने के लिए इंसान को अपनी संकीर्णता और अपने पक्षपात की आदत छोड़नी होगी।
सारे ज़ुल्म की ज़ड़ यही है । जब भी किसी पर कोई ज़ुल्म हुआ तो ज़ालिम में ये दोनों बुराईयाँ ज़रूर मिलीं ।
जो भी आदमी हक़ और इंसाफ़ के लिए कुछ करना चाहता है तो उसे पहले ख़ुद को इन दोनों बुराईयों से पाक करना होगा। उसकी यही कोशिश साबित करेगी कि अपने इरादे के प्रति वह कितना गंभीर है ?
अपने अंदर बुराई को क़ायम रखते हुए बाहर की बुराई को मिटाने की कोशिश या तो नादानी कहलाती है या फिर पाखंड !
दुनिया के साथ साथ ब्लॉग जगत में भी आज यही चलन आम है ।
Friday, June 10, 2011
जल्दी ही बाबा रामदेव और केंद्र सरकार में फिर से कोई समझौता गुपचुप हो जाएगा
दो अलग अलग लेख पढ़े और उन पर ये टिप्पणियाँ दीं । आप लेख छोड़िए और दोनों टिप्पणियाँ देखिए :
एक साफ सुथरा लेख ।
संतुलित आकलन ।
विदेश में काला धन ।
बाबा का अनशन ।
जागेगा जन गण मन ।
मन बनाएं सु-मन।
मन में है सच्चा धन।
सबको दें सच्चा धन।
बाबा पे है दुनिया का धन।
इसीलिए हुआ दे दनादन दन।
यह एक मौलिक टिप्पणी आपके लिए गिफ़्ट , बाबा के सुरक्षित बच निकलने की ख़ुशी में ।
...और यह भी :
कोई भी कारोबारी आदमी सरकार के ख़िलाफ़ लड़ ही नहीं सकता और लड़ता भी नहीं । जो ऐसा करता है सरकार उस पर और उसके मददगार व्यापारियों पर ढेर के ढेर मुक़ददमे लगा देती है और ऐसी लड़ाईयों में जानें तक भी गवाँ चुके हैं लोग ।
क्या बाबा जी अपनी जान माल का नुक्सान सह पाएंगे ?
हमारा आकलन यह है कि जल्दी ही बाबा और केंद्र सरकार में फिर से कोई समझौता गुपचुप हो जाएगा और इस बार बाबा पूरी ईमानदारी से उसका पालन भी करेंगे ।
मामले की नज़ाकत योग सेना वाले बाबा अच्छी तरह समझ चुके हैं ।
एक साफ सुथरा लेख ।
संतुलित आकलन ।
विदेश में काला धन ।
बाबा का अनशन ।
जागेगा जन गण मन ।
मन बनाएं सु-मन।
मन में है सच्चा धन।
सबको दें सच्चा धन।
बाबा पे है दुनिया का धन।
इसीलिए हुआ दे दनादन दन।
यह एक मौलिक टिप्पणी आपके लिए गिफ़्ट , बाबा के सुरक्षित बच निकलने की ख़ुशी में ।
...और यह भी :
कोई भी कारोबारी आदमी सरकार के ख़िलाफ़ लड़ ही नहीं सकता और लड़ता भी नहीं । जो ऐसा करता है सरकार उस पर और उसके मददगार व्यापारियों पर ढेर के ढेर मुक़ददमे लगा देती है और ऐसी लड़ाईयों में जानें तक भी गवाँ चुके हैं लोग ।
क्या बाबा जी अपनी जान माल का नुक्सान सह पाएंगे ?
हमारा आकलन यह है कि जल्दी ही बाबा और केंद्र सरकार में फिर से कोई समझौता गुपचुप हो जाएगा और इस बार बाबा पूरी ईमानदारी से उसका पालन भी करेंगे ।
मामले की नज़ाकत योग सेना वाले बाबा अच्छी तरह समझ चुके हैं ।
Monday, April 18, 2011
जन्नत का फूल flower of jannah
आज हमारी ज़ौजा मोहतरमा ने कहा कि कम्प्यूटर के वाल पेपर से अनम को हटे हुए बहुत दिन हो गए हैं . सो मैंने आज उनकी फरमाइश पर अपनी बेटी अनम का यह फोटो अपने ब्लॉग से ढूँढा और उसे वाल पेपर बनाया .
जब हमारी बेटी अनम का यह फोटो लिया गया तो वह 26 दिन की थी .
The flower of jannah एक मासूम कली हमारे आंगन में खिली, हमारे घर को महकाया और फिर जन्नत का फूल बन गई। हमारे दिल उसकी यादों के नूर से हमेशा रौशन रहेंगे . - Anwer Jamal
Sunday, April 17, 2011
मौलाना वली रहमानी
मुंगेर में मुस्लिम शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र है। कभी मौका मिले तो यहां खानकाह जरूर जाएं। मदरसा शिक्षा का क्या मतलब है, यहां पता चलता है। कई परतें खुलती हैं। देश-विदेश के विद्यार्थी यहां तालीम हासिल करने आते हैं। इसके प्रमुख इस्लामी विद्वान मौलाना वली रहमानी हैं। वे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में तो हैं ही, मदरसा मॉडर्नाइजेशन एंड मॉनिटरिंग कमिटी के चेयरमैन भी हैं। मिलना आसान नहीं। एक तो वे यहां रहते नहीं, देश-विदेश जाते-आते रहते हैं। संयोग से थे.
करीब 25 साल पुराने परिचय की उन्हें कद्र आती है, सो बुलवा लिया। लेकिन समय रात 9:30 का दिया और मिल पाए 10:15 बजे के बाद। जितनी देर इंतजार कराया, उतने वक्त तक मिले, सो कोई शिकवा नहीं रही। पहले कांग्रेसी थे, अब किसी पार्टी में नहीं। राजनीति नहीं, समाज उनकी चिंता का विषय है।
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